यूपी के कौशांबी जिले में एक बुजुर्ग मुसलमान को संस्कृत का ज्ञान है और वह चतुर्वेदी बन गए हैं. चारों वेदों की इन्हें पूरी जानकारी है. चतुर्वेदी की उपाधि इन्हें कई साल पहले एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मिली.
जानकारी के मुताबिक कौशांबी के मुस्लिम परिवार में जन्मे करीब 75 साल के हयात उल्ला को बचपन से ही संस्कृत भाषा से प्रेम रहा. यही कारण रहा कि उन्होंने अपनी मास्टर डिग्री भी संस्कृत से ली. आगे जाकर वे वेे शिक्षक बन गए.
हयात उल्ला एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते थे. साल 2003 में वह रिटायर हुए. इसके बाद भी उन्होंने छात्रों को पढ़ाना नहीं छोड़ा. अब वह महगांव इंटर कॉलेज में छात्रों को पढ़ाते हैं. संस्कृत विषय में उन्होंने कई किताबें लिखी हैं.
संस्कृत के प्रचार व प्रसार के लिए वह अमेरिका, नेपाल आदि देशों में सेमिनार भी कर चुके हैं. उल्ला को संस्कृत के प्रति इतनी खुमारी है कि वे घर में भी संस्कृत भाषा में बातचीत करते हैं. 1967 में हयात उल्ला को एक राष्ट्रीय सम्मेलन में चतुर्वेदी की उपाधि दी गई.
हयात उल्ला चतुर्वेदी का मानना है कि भाषा का ज्ञान मजहब की दीवार को गिरा देता है, जो आज के समय की बुनियादी जरूरत है. जिन छात्रों को वह पढ़ाते हैं उनका कहना है कि हयात उल्ला चतुर्वेदी के पढ़ने का तरीका अलग है. वह समझाने के लिए हिंदी, उर्दू और संस्कृत भाषा का जब प्रयोग करते है तो बेहतर समझ में आता है.
जानकारी के मुताबिक कौशांबी के मुस्लिम परिवार में जन्मे करीब 75 साल के हयात उल्ला को बचपन से ही संस्कृत भाषा से प्रेम रहा. यही कारण रहा कि उन्होंने अपनी मास्टर डिग्री भी संस्कृत से ली. आगे जाकर वे वेे शिक्षक बन गए.
हयात उल्ला एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते थे. साल 2003 में वह रिटायर हुए. इसके बाद भी उन्होंने छात्रों को पढ़ाना नहीं छोड़ा. अब वह महगांव इंटर कॉलेज में छात्रों को पढ़ाते हैं. संस्कृत विषय में उन्होंने कई किताबें लिखी हैं.
हयात उल्ला चतुर्वेदी का मानना है कि भाषा का ज्ञान मजहब की दीवार को गिरा देता है, जो आज के समय की बुनियादी जरूरत है. जिन छात्रों को वह पढ़ाते हैं उनका कहना है कि हयात उल्ला चतुर्वेदी के पढ़ने का तरीका अलग है. वह समझाने के लिए हिंदी, उर्दू और संस्कृत भाषा का जब प्रयोग करते है तो बेहतर समझ में आता है.
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