
73 किलो वजन और पौने पांच फीट लंबाई वाली 34 साल की डॉली सिंह को क्या हो गया है कि वह हर समय इंस्टाग्राम पर अपना योग करते हुए फोटो और वीडियो डालती रहती हैं.
ये इस कहानी का शुरुआती परिचय है. कहानी है डॉली सिंह की, जिन्हें योग करते देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं. इंस्टाग्राम और फेसबुक पर उनका पेज योगाफॉरमुंबईऑल काफी पॉपुलर है.
लेकिन डॉली कहती हैं, जब पहली बार मैंने इंस्टाग्राम पर योग करते हुए अपना फोटो और वीडियो डाला तो लोगों को काफी अजीब लगा था. करीबी दोस्तों को भी. दोस्तों ने कहा, “इस तरह अपनी बॉडी दिखाना ठीक नहीं. लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे.” वह शुरुआती प्रतिक्रिया थी. डॉली कहती हैं, “लेकिन बाद में सब सहज हो गए, बल्कि बाद में मेरा वही बॉडी शेप उन्हें सहज और सामान्य लगने लगा.”
डॉली हमेशा से ऐसी मोटी नहीं थीं. 1984 में बिहार के धनबाद में जन्मी डॉली का बचपन बाकी बच्चों की तरह सामान्य कद-काठी वाला ही था. लेकिन शरीर में किन्हीं वजहों से विटामिन ई की जबर्दस्त कमी थी. उस कमी को पूरा करने के लिए दसियों बोतलें विटामिन ई ऑइल की लेनी पड़ी. साबुन तक विटामिन ई वाला.
डॉली कहती हैं, शायद उसी का असर था कि किशोरावस्था के समय अचानक मेरा वजन बढ़ना शुरू हो गया. अति किसी भी चीज की खतरनाक है और वह शरीर पर बुरा असर ही डालती है.
खैर, लेकिन गोल-मटोल डॉली को कम से कम कॉलेज जाने तक तो कभी ऐसा नहीं लगा कि वह मोटी है. कॉलेज भी मिला तो कौन सा. दिल्ली का मिरांडा हाउस. देश का सबसे फेमिनिस्ट कॉलेज. यहां आकर लड़कियां स्टाइल और डेटिंग से ज्यादा एक्टिविज्म करती हैं. बॉडी को लेकर शर्मिंदा होने की बजाय बॉडी शेमिंग पर सेमिनार करती हैं.
डॉली कहती हैं, जब तक सेहत का सवाल बीच में नहीं आया, अपने शरीर से मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई. मैं जानती थी कि पारंपरिक पैमानों के हिसाब से मैं सुंदर नहीं हूं. मैं मोटी हूं, छरहरी लड़कियों जैसी नहीं हूं. लेकिन क्या फर्क पड़ता है.
मैं तेज दिमाग थी, आत्मविश्वास से भरी थी. मैं घूमती, पढ़ती, प्रेम करती, अपना काम करती. मैं सबसे हैंडसम लड़कों के साथ डेट पर गई. मुझे कभी नहीं लगा कि मेरे वजन की वजह से मुझे कुछ भी बाकियों के मुकाबले कम मिला हो.
साल 2012 की बात है. डॉली हंपी घूम रही थीं. शरीर पर वजन 93 किलो और पीठ पर लदे एक बड़े बैगपैक का वजन अलग से. नाव में चढ़ते हुए अचानक उनका पैर मुड़ गया और पैरों में मोच आ गई. उसके बाद ही डॉक्टरों के चक्कर लगने शुरू हुए. हर डॉक्टर एक ही बात कहता, “यू आर ओवरवेट.” एक डॉक्टर ने कहा, “ठीक है कि तुम्हें बॉडी शेप से प्रॉब्लम नहीं है. लेकिन अगर तुम्हें ये ट्रैकिंग का शौक है, घूमने और पहाड़ चढ़ने का तो मैं बता दूं कि अब ये सब तुम नहीं कर पाओगी.”
“फिर? अब मैं क्या करूं?”
“वजन कम करो.”
इस तरह शुरुआत हुई 93 किलो से 63 किलो होने की. सुंदर और आकर्षक दिखने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि वह घूम सके और पहाड़ चढ़ सके. डॉली कहती हैं, “एक महीने तक तो मैं सिर्फ सुबह जल्दी उठने के लिए अपने आप से संघर्ष करती रही. मैं सिर्फ सुबह उठती और पार्क में जाकर बैठ जाती. ये लड़ाई का पहला चरण था.

फिर शुरू हुआ दौड़ने का सिलसिला. शुरू में काफी कम समय में मैं अचानक 93 से 63 किलो की हो गई. पता है क्यों? सिर्फ दौड़कर नहीं. मैंने खाना-पीना तकरीबन छोड़ दिया था.” डॉली कहती हैं, “ये पागलपन है. मैं किसी को यह करने की सलाह नहीं दूंगी.”
खाना छोड़ तो दिया, लेकिन कब तक. खाना जब फिर शुरू हुआ तो वजन वापस आने लगा. 63 से फिर वह 68 की हो गई. इस बीच उन्होंने क्या-क्या नहीं किया. ट्रेडमिल पर दौड़ने से लेकर डांस, एरोबिक्स, जुंबा क्लासेस तक सबकुछ. लेकिन फिर अचानक एक दिन उनका परिचय योग से हुआ. ये व्यायाम के बाकी सब तरीकों से थोड़ा अलग था. टीचर भी काफी सुलझे हुए थे.
डॉली कहती हैं, “वो शायद सबसे बेहतर तरीके से मुझे समझ और समझा पाए कि हर शरीर की अपनी बनावट और अपनी खासियत होती है. योग का मकसद एक खास आकार और वजन हासिल करने से ज्यादा आंतरिक शक्ति और लचीलापन हासिल करना है. जैसेकि मैं मोटी जरूर थी, लेकिन मेरे शरीर में काफी लोच था. बाहर से छरहरे और स्वस्थ दिख रहे लोगों के मुकाबले काफी ज्यादा. उन्होंने इस बात को समझा और मुझे सिखाना शुरू किया.”
लेकिन कुछ समय बाद उस योग टीचर की जगह जो नया टीचर आया, वह काफी पारंपरिक किस्म का था. डॉली का मीजान बैठा नहीं तो उन्होंने क्लास छोड़ घर पर खुद अभ्यास शुरू कर दिया. वो यूट्यूब पर वीडियो देखतीं और घर पर ही योग करतीं. यह प्रयोग काफी सफल रहा. “हम खुद अपने गुरु भी हो सकते हैं,” डॉली कहती हैं, “हमसे बेहतर हमारे शरीर को और कौन समझता है भला.”
आज उनका वजन 73 किलो है. डॉली खुश हैं. जो अच्छा लगता है, वो खाती हैं. कहती हैं कि अगर आप मन का खाना छोड़ दें और हर वक्त आपका दिमाग यही सोचता रहे कि वो ये खाना चाहता है, वो खाना चाहता है. खाना चाहे भी और खाए भी नहीं. कुल मिलाकर आप खाएं चाहे न खाएं, लेकिन दिमाग में हर वक्त खाना ही रहे तो क्या फायदा. इससे बेहतर तो है कि जो अच्छा लगे खाएं और मेहनत कर उसे जलाएं.
पैर की मोच से शुरू हुआ डॉली का सफर आज सिर्फ वजन कम करने और छरहरे दिखने से कहीं आगे जा चुका है. डॉली कहती हैं, “मेरा मकसद पतला होना कभी नहीं था. मैं अपनी स्थूल देह के साथ भी काफी एक्टिव थी, खुश थी.”

फिर योग की क्या जरूरत थी और योग करने से बदला क्या? डॉली कहती हैं, “योग या किसी भी तरह के शारीरिक व्यायाम का मकसद सिर्फ वजन कम करना नहीं है. योग से हुआ ये है कि मेरा शरीर और मेरा मन पहले के मुकाबले बहुत खुश रहते हैं.”
योग ने डॉली की जिंदगी को ऐसे बदला है कि उन्हें रोज सुबह सोकर उठना अच्छा लगता है. काम पर जाना खुशी देता है. रोजमर्रा की जिंदगी की बातें, अच्छी और बुरी, मीठी और तीखी, उदास नहीं करतीं. वह खुश हैं तो उन्हें संसार भी खुश नजर आता है.”
वह कहती हैं, “मेरा शरीर स्वस्थ और सक्रिय है. वह दिन भर काम करता है और रात में थककर गहरी नींद सोता है. अब कभी ऐसा हो जाए कि दो दिन योग न कर पाऊं तो लगता है, शरीर जाम हो रहा है. मुझे पता नहीं कि अब ये नहीं करूंगी तो और क्या करूंगी.”
जीवन का मकसद अगर खुशी है तो डॉली को योग से वह खुशी मिली है. वह कहती हैं कि मेरा शरीर इतना खुश है कि आने वाले तीस साल ऐसे ही रहना चाहता है.
डॉली के जीवन और अनुभवों का सार ये है कि पतला होना अच्छा है, लेकिन पतला होना ही मकसद नहीं होना चाहिए. आप योग इसलिए न करें कि घर बैठें और सुंदर दिखें. आप योग करें ताकि इतने स्वस्थ और मजबूत हों कि पहाड़ चढ़ सकें, लंबी पैदल यात्राएं कर सकें और खुश रह सकें. मैं योग करती हूं क्योंकि खुश रहना चाहती हूं.
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